कोरोना वायरस का टीका बनाने में दुनिया कहा चूक रही है
वैज्ञानिकों द्वारा यह पता चला है की सार्स बीमारी कोरोना वायरस की वजह से हुई थी। और यह जानवरों से शुरू होकर इंसानो तक पहुंच गया। सार्स (SARS) का मतलब था सीवियर एक्यूट रेस्पिरेटरी सिंड्रोम जिसमे भी सांस की तकलीफ होती थी।
सार्स बीमारी के समय इसका टीका बनाने के लिए यूरोप, अमेरिका और एशिया के बहुत सारे वैज्ञानिक इसका तेजी से टीका तैयार करने के काम में लग गए थे। कई लोग तो इसकी वैक्सीन के क्लीनिकल ट्रायल भी शुरू कर चुके थे। लेकिन तभी सार्स की महामारी पर काबू पा लिया गया और दुनिया की तमाम रिसर्च बंद कर दिए गए।
इसके बाद 2012 में मार्स-कोव का प्रकोप हुआ। यह बीमारी ऊंटों से इंसानों में आई थी। उस समय भी बहुत सारे देशों के टीका बनाने का काम किया था। लेकिन तब भी अमेरिका के ह्यूस्टन में वैज्ञानिकों की टीम ने कोरोना वायरस के खिलाफ टीका बनाने का काम बंद नहीं किया था। डॉक्टर मारिया ऐलिना ने तब कहा था कि उन्होंने ट्रायल्स खत्म कर लिए थे और वैक्सीन के शुरुआती उत्पादन प्रक्रिया के अहम पड़ाव से भी गुजर चुके थे।
तब यह लोग एनआईएच के पास गए थे और उनसे पूछा था कि हम इस वैक्सीन को जल्द क्लिनिक तक पहुंचाने के लिए क्या कार सकते है तो उन्होंने जवाब दिया था कि फ़िलहाल हमे इसमें दिलचस्पी नहीं है।
धीरे-धीरे जब संक्रमण खत्म होने लगा तो दुनिया भर के दर्जनों वैज्ञानिकों को इसलिए इस पर रिसर्च बंद करनी पड़ी क्योंकि लोगों की दिलचस्पी कम हो गई थी और रिसर्च के लिए पैसे भी नहीं थे।
लेकिन अगर सार्स और मर्स की वैक्सीन बन जाती तो भविष्य में आने वाली महामारियों के लिए नए टीके का विकास ज़्यादा तेज रफ़्तार से किया जाता।