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दूरबीन से बच्चेदानी का सफल ऑपरेशन, ऐसे रखें खुद का ख्याल?

दूरबीन से बच्चेदानी का सफल ऑपरेशन, ऐसे रखें खुद का ख्याल?

अधिकतर महिलाओं को अनियमित माहवारी और इस दौरान होने वाले असहनीय दर्द की शिकायत रहती है। इसका कारण बच्चेदानी  में गांठ और इस समय न बरती जाने वाली असावधानी के कारण होता है। कई महिलाएं कम उम्र में ही बच्चेदानी निकलवा देती हैं जिसके बाद उन्हें अत्यधिक गर्मी व घबराहट लगती है।

स्त्री रोग विशेषज्ञ के मुताबिक कम उम्र में बच्चेदानी निकालने से ओवरी तीन से चार वर्ष बाद कार्य करना कम कर देती है। बच्चेदानी की गांठ या ट्यूब बंद होने जैसी तमाम बीमारियों में दूरबीन विधि बेहद कारगर है। इससे बच्चेदानी को बचाया जा सकता है और पीड़िता मां बन सकती हैं। 

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हिस्टेरेक्टोमी वह सर्जिकल प्रक्रिया है जिसका उपयोग करके महिला के शरीर से गर्भाशय को निकाला जाता है। गर्भाशय (uterus) के साथ अण्डाशय, फैलोपिन ट्यूब, योनि और सर्विक्स को भी हटाया जा सकता है। हिस्टेरेक्टोमी ओपन पद्धति और लैप्रोस्कोपी प्रकिया द्वारा की जाती है। जिसमें 1 से 2 घंटे का समय लगता है। 

योनि हिस्टेरेक्टोमी

योनि (Vaginal hysterectomy) प्रक्रिया में गर्भाशय को योनि (vagina) से हटा दिया जाता है।  सैलिंगो-ओफोरेक्टोमी (salpingo-‎oophorectomy) के साथ कुल हिस्टरेक्टॉमी (hysterectomy) सर्जन द्वारा योनि हिस्टरेक्टॉमी ‎‎(Vaginal hysterectomy) की प्रक्रिया के दौरान एक या अधिक फैलोपियन ट्यूबों और ‎अंडाशय (fallopian tubes and ovaries) को हटाने के साथ जुड़ा हुआ है। ये सभी अंग प्रजनन प्रणाली (reproductive system) का हिस्सा हैं।

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योनि हिस्टेरेक्टोमी के कारण

योनि हिस्टेरेक्टोेमी के कई कारण हैं इनमें भारी मासिक धर्म ‎रक्तस्राव, गर्भाशय ग्रीवा कैंसर या गर्भावस्था (menstrual bleeding, cervical cancer or pregnancy) ‎शामिल है। भारी अवधि का सामना करने वाली अधिकांश महिलाओं को योनि ‎हिस्टरेक्टॉमी (Vaginal hysterectomy) की आवश्यकता नहीं होती है, फिर भी ऐसी कई ‎महिलाएं हैं जो इस शल्य चिकित्सा पद्धति का चयन करती हैं । मासिक धर्म ‎रक्तस्राव (menstrual bleeding) को समाप्त करने में यह प्रक्रिया काफी प्रभावी है। 

बच्चेदानी के ऑपरेशन के कारण-

कई बार मासिक धर्म (माहवारी) से संबंधित या अन्य कारणों से रक्तस्राव ज्यादा होने लगता है जो दवाई से भी नहीं रुकता है तब ऐसी अवस्था में गर्भाशय निकालने की जरूरत पड़ जाती है। पेडू में पुराना दर्द जिसके कारण गर्भाशय का संक्रमण हो सकता है, इस स्थिति में भी गर्भाशय के ऑपरेशन की जरूरत पड़ सकती है। गर्भाशय के मुंह पर या गर्भाशय से जुड़ा कैंसर में गर्भाशय को ऑपरेशन के द्वारा शरीर से बाहर निकालना पड़ता है। कभी-कभी गर्भाशय योनि मार्ग से नीचे उतर जाता है तो इस स्थिति में गर्भाशय को ऑपरेशन द्वारा हटा दिया जाता है। कभी-कभी प्रसव के बाद का रक्तस्राव बंद नहीं होता है तब गर्भाशय को हटाना पड़ता है।

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गर्भाशय के ऑपरेशन यानि हिस्टेरेक्टोमी के प्रकार-

  1. एब्डोमीनल हिस्टेरेक्टोमी (Abdominal Hysterectomy): – इस प्रकार के ऑपरेशन में पेट के नीचे 5 इंच लंबा चीरा लगाया जाता है। फिर पेट की मांसपेशियों, रक्त वाहिकाओं व अन्य अंग को ध्यान से हटाकर गर्भाशय को अपनी जगह पर रखने वाले लिंगामेंट्स को काटकर गर्भाशय को अलग किया जाता है।  फिर मांसपेशियों व अन्य अंगों को पहले की तरह लगाकर चीरा को सर्जिकल धागे से टाँक दिया जाता है।
  2. वेजाइनल हिस्टेरेक्टोमी (Vaginal Hysterectomy): – इस ऑपरेशन में पेट में कोई सर्जिकल चीरा नहीं काटा जाता है बल्कि योनि के माध्यम से सर्जिकल उपकरण को अंदर डाला जाता है। फिर गर्भाशय को हटाकर योनि छिद्र के माध्यम से ही बाहर निकाला जाता है। 
  3. लैप्रोस्कोपिक हिस्टेरेक्टोमी (Laparoscopic Hysterectomy): – इस ऑपरेशन में पेट की त्वचा पर कई छोटे-छोटे कट लगाए  जाते हैं। इन कट के माध्यम से सर्जिकल उपकरण अंदर डाला जाता है व इन्हीं में से एक कट से लचीली ट्यूब से जुड़ा एक विडियो कैमरा (Laparoscope) डाला जाता है।

बच्चेदानी के ऑपरेशन के बाद होने वाले दुष्परिणाम-

ऑपरेशन के माध्यम से जब बच्चेदानी को बाहर निकाल दिया जाता है तो इसके कई दुष्परिणाम सामने आते हैं। यदि पेट में चीरा लगाकर ऑपरेशन किया गया हो तो कई बार उस हिस्से में पेट दर्द की शिकायत आने लगती है। ऑपरेशन से यदि संक्रमण हो जाती है तो उस संक्रमण के कारण पेडू में दर्द हो सकता है. यदि ऐसा होता है तो इसका उचित इलाज कराना चाहिए। कई बार ऑपरेशन में दोनों अंडाशय निकाल निकाल दिये दिये जाने पर शरीर में इन हार्मोन्स का स्तर घट जाता है जिस कारण शरीर में अन्य कई प्रकार के समस्या आने लगती है। कई महिलाएँ ऑपरेशन के बाद डिप्रेशन का शिकार भी हो जाती हैं। गर्भाशय निकाल दिये जाने के बाद महिला प्राकृतिक रूप से गर्भ धारण नहीं कर सकती है।

बच्चेदानी के ऑपरेशन में ध्यान देने योग्य बातें- 

गर्भाशय (uterus) के ऑपरेशन की समस्या अगर दवाई से संभव हो तो एक बार इस पर भी विचार कर लेना चाहिए।ऑपरेशन करना या गर्भाशय निकालना अंतिम उपाय बचे तब ही गर्भाशय का ऑपरेशन करना चाहिए। 
गर्भाशय की धमनियों को सोनोग्राफी तकनीक से या लैप्रोस्कोपी तकनीक से बांधा जा सकता है जिससे रक्तस्राव बंद हो सकता है और गर्भाशय बाहर निकालने से बचा जा सकता है। इसके अलावा गर्भाशय के अंदर गरम पानी के गुब्बारा रखकर अंदरूनी परत नष्ट की जा सकती है जिससे रक्तस्राव बंद हो जाता है। लैप्रोस्कोपी तकनीक से गर्भाशय की गाँठ भी निकाली जा सकती है। इस प्रकार वैकल्पिक उपचार पर विचार कर लेना चाहिए व अंतिम स्थिति में ही गर्भाशय निकालने का फैसला करना चाहिए।

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लेप्रोस्कोपिक सर्जरी से लाभ

  • कम दर्द होना- लेप्रोस्कोपिक सर्जरी का प्रमुख लाभ यह होता है, कि इस प्रक्रिया में कम दर्द होता है क्योंकि इसे दूरबीन के माध्यम से किया जाता है।
  • स्वास्थ संबंधी समस्याओं का इलाज करना- लेप्रोस्कोपिक सर्जरी को कई सारी बीमारियों जैसे हर्निया, रसौली, अल्सर इत्यादि का इलाज करने के लिए किया जाता है।
  • कम निशान पड़ना- चूंकि, इस सर्जरी के दौरान कम कट लगाए जाते हैं, इसी कारण व्यक्ति के शरीर पर कम निशान पड़ते हैं।
  • कम रक्तस्राव होना- इस सर्जरी के दौरान व्यक्ति को कम रक्तस्राव होता है इसी कारण उसके शरीर से खून की कमी नहीं होती है।
  • जल्दी ठीक होना- चूंकि, इस सर्जरी के दौरान किसी प्रकार का दर्द, निशान, रक्तस्राव इत्यादि नहीं होता है इसी कारण व्यक्ति को किसी तरह की कमज़ोरी महसूस नहीं होती है और वह इस सर्जरी के बाद जल्दी से ठीक हो जाता है।
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