प्लाज्मा थेरेपी से होगा कोरोना वायरस का अंत!What is plasma therapy
प्लाज्मा थेरेपी से कोरोना वायरस के इलाज में उम्मीद की एक नई किरण जगी है। इस तकनीक के परीक्षण को स्वास्थ संगठन और वैज्ञानिकों ने मंजूरी दे दी है। बतादें, दिल्ली के लोकनायक जयप्रकाश अस्पताल में भर्ती चार मरीजों पर प्लाज्मा थेरेपी के ट्रायल के शुरुआती नतीजे सकारात्मक हैं।
दिल्ली के सीएम अरविंद केजरीवाल ने बीमारी से उबर चुके लोगों से प्लाज्मा दान करने की अपील की है। वहीं राजस्थान सरकार ने इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च (ICMR) से इसका इस्तेमाल करने की मंजूरी मांगी है। एसएमएस (SMS) ने प्लाज्मा डोनर भी तैयार कर लिया है।
प्लाज्मा थेरपी से होगा कोरोना वायरस का अंत
कोविड-19 से ठीक हो चुके मरीज़ों के खून से एंटीबॉडीज लेकर उनका इस्तेमाल गंभीर रूप से संक्रमित मरीज़ों के इलाज में किया जाता है। प्लाज्मा थेरेपी तकनीक कहते हैं। किसी मरीज के ठीक होने के बाद भी एंटीबॉडी प्लाज्मा के साथ शरीर में रहती हैं, फिर बीमार के शरीर में यह स्वस्थ प्लाज्मा फिर ये नए शक्तिशाली एंटिबॉडी पैदा करने लग जाता है, जिससे माना जा रहा है कि कोरोना हार जाता है।
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प्लाज्मा होता क्या है?
खून में मौजूद पीले रंग का तरल प्लाज्मा होता है। रेड ब्लड सेल, वाइट ब्लड सेल और प्लेट्लेट्स आदि को अलग करने के बाद प्लाज्मा बचता है। प्लाज्मा शरीर में मौजूद अन्य वायरसों के खिलाफ एंटीबॉडी बनाता है और जिससे मौजूदा वायरस खत्म हो जाता है।
कब अधिक सफल होती है प्लाज्मा थेरेपी
प्लाज्मा थेरेपी से इलाज करने के लिए सबसे सही वक्त दूसरी स्टेज होती है। क्योंकि पहली में इसे देने का फायदा नहीं और तीसरी में यह कारगर नहीं रहेगा। प्लाज्मा थेरपी मरीज को तीसरी स्टेज तक जाने से रोक सकती है। कोरोनावायरस के मरीजों पर इसके इस्तेमाल से उनकी हालत में सुधार देखा गया है।
120 साल पहले हुआ प्लाज्मा थेरेपी का प्रयोग
यह कोई नया इलाज नहीं है। यह 130 साल पहले यानी 1890 में जर्मनी के फिजियोलॉजिस्ट एमिल वॉन बेह्रिंग ने खोजा था। इसके लिए उन्हें नोबेल सम्मान भी मिला था। यह मेडिसीन के क्षेत्र में पहला नोबेल था।
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