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Coronavirus : प्लाज्मा थेरेपी से होगा कोरोना का इलाज, WHO ने दी जानकारी

Coronavirus : प्लाज्मा थेरेपी से होगा कोरोना का इलाज, WHO ने दी जानकारी

कोरोना वायरस के संक्रमण से बचने के लिए वैज्ञानिक लगातार प्रयोग कर रहे हैं। इस बीच प्लाज्मा थेरपी को एक नई उम्मीद के तौर पर देखा जा रहा है। आईसीएमआर ने केरल को प्लाज्मा थेरेपी के परीक्षण को मंजूरी दे दी है। केरल ऐसा राज्य है जिसने प्लाज्मा थेरेपी पर रिसर्च और प्रोटोकॉल को शुरु कर दिया है। वहीं दिल्ली में भी प्लाज्मा थेरेपी के परीक्षण की तैयारी की जा रही है। WHO ने कहा है कि प्रयोग के हिसाब से प्लाज्मा का इस्तेमाल ठीक है, लेकिन इसके लिए पेशेंट की रोग प्रतिरोधक क्षमता भी बेहतर होनी चाहिए।

क्या है प्लाज्मा थेरेपी

इस थेरपी में कोरोना पीड़ित व्यक्ति के ठीक होने के बाद उसके ब्लड के जरिए दूसरे बीमार मरीज़ों को ठीक किया जा सकता है। सामान्य शब्दों में समझें तो जो मरीज ठीक हो गया, उसके अंदर इस वायरस के खिलाफ बने एंडीबॉडी का इस्तेमाल बीमार मरीज़ों में किया जाता है, जिससे काफी सीरियस मरीज में रिकवरी की उम्मीद बढ़ जाती है। 

किसी खास वायरस या बैक्टीरिया के खिलाफ शरीर में एंटीबॉडी तभी बनता है, जब इंसान उससे पीड़ित होता है। जो मरीज कोरोना वायरस की वजह से बीमार हुआ था, जब वह ठीक हो जाता है तो उसके शरीर में कोविड के खिलाफ एंटीबॉडी बनता है, इसी एंटीबॉडी के बूते पर मरीज ठीक होता है।

कौन हो सकते हैं प्लाज्मा डोनर

– कोरोना संक्रमण से पूरी तरह ठीक होने वाले मरीज।

– वायरस के संक्रमण से ठीक होने के बाद 14 दिन तक जिसमें दोबारा लक्षण न दिखे।

– थ्रोट-नेजल स्वैब की रिपोर्ट तीन बार नेगेटिव आने के बाद डोनेट कर सकता है।

WHO ने दी प्लाज्मा थेरेपी की जानकारी

WHO के हेल्थ इमरजेंसी प्रोग्राम के हेड डॉक्टर माइक रेयान ने इस बात की जानकारी जेनेवा में दी। माइक रेयान ने कहा कि इस दिशा में काम किया जाना चाहिए। डॉक्टर माइक का मानना है कि हाइपरिम्यून ग्लोब्युलिन रोगियों में एंटीबॉडी को बेहतर बनाता है, जो रोगियों को बेहतर करता है। इसका इस्तेमाल सही वक्त पर किया जाना चाहिए। 

वर्ल्ड हेल्थ ऑर्गेनाइजेशन(WHO) ने कहा है कि प्रयोग के हिसाब से प्लाज्मा का इस्तेमाल ठीक है, लेकिन इसके लिए पेशेंट की रोग प्रतिरोधक क्षमता भी बेहतर होनी चाहिए। डॉक्टरों के सामने पेशेंट की रोग प्रतिरोधक बढ़ाने की भी चुनौती है। 

जानकारी के मुताबिक, 2003 में सार्स महामारी, एच 1 एन 1 इंफ्लुंजा और 2012 में मार्स की महामारी के दौरान भी प्लाज्मा थेरेपी पर अध्ययन किया गया था।

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