इबोला के लक्षण, कारण, बचाव और टीके की जानकारी
इबोला विषाणु रोग (ईवीडी) वर्ष 2014 में अभूतपूर्व महामारी (Unprecedented Pandemic) के रूप में उभर कर सामने आता है। जहाँ ईवीडी के पूर्व प्रकोप को काफी तेजी से रोक लिया गया था, वहीं इस बार की महामारी भीड़-भाड़ वाले शहरी क्षेत्रों में फैली है जहाँ इसका संचरण (Transmission) कई महीने तक चला था। पूर्वकालिक विश्लेषण (Early Analysis) से संकेत मिलता है कि इस रोग का पहला मामला 2013 में सामने आया होगा।
इस रोग का संचरण पश्चिमी अफ्रिकी देशों तक सीमिल रहा, पर युरोप और ब्रिटेन के स्वास्थ्य-सेवा व्यवस्थाओं में प्रसार की कई घटनाएं अपवाद रहीं। अमेरिका में दो नर्स और एक स्पेनिश नर्स पश्चिमी अफ्रीका में अर्जित रोग के शिकार लोगों के संपर्म में आने से बीमार पड़ीं। हालांकि वे नर्सें रोग से उबर गईं।
इबोला वायरस रोग का कोई इलाज नहीं है, पर अस्पताल में सहायक सेवा से रोगी के जीवित रहने की संभावना बढ़ जाती है। इसके अलावा कुछ रोगियों के इलाज में इस रोग से उबर जाने वाले व्यक्तियों से प्राप्त प्लाज्मा आधानों (Plasma Infusion) तथा एक प्रायोगिक एंटीबॉडी (Experimental Antibody) दवा का इस्तेमाल किया गया है।
इबोला वायरस की पहचान सबसे पहले 1976 में की गई थी। उस वर्ष के अंत तक वायरस की दो संबद्ध (Affiliates) प्रजातियों की पहचान इबोला जायरे और इबोला सूडान के रूप में की गई। तीन अन्य प्रजातियों का भी पता लगाया गया।
इबोला वायरस बहुत खतरनाक वायरस है। इसकी चपेट में आने पर रोगी की हालत खराब होती रहती है। इबोला वायरस के बारे में कहा जाता है कि इस वायरस का संक्रमण जानवर से होता है। वायरस को जड़ से खत्म करने के लिए कोई दवा नहीं बनाई जा सकती। इसके लिए लगातार प्रयास किए जा रहे है। जानकारों का कहना है कि संक्रमित जानवरों के शरीर से होने वाले कई तरह के स्राव से फैलता है।
इबोला का लक्षण:
- मुंह, कान, नाक से खून बहना
- उल्टी होना
- पेट दर्द होना
- शरीर में दर्द होना
- कमजोरी और फ्लू जैसे लक्षण
- शरीर पर फुंसी होना
इबोला के कारण:
- इबोला वायरस संक्रमित जानवरों के काटने या खाने से लोगों में फैलता है। विशेषज्ञों ने वायरस के अध्ययन के लिए जानवरों की चीर-फाड़ की तो उन्हें भी संक्रमण हो सकता है।
- इबोला से पीड़ित रोगी के शरीर से निकलने वाला पसीना, खून या दूसरे तरल पदार्थ से यह वायरस फैलता है। इसीलिए इबोला के रोगी को अलग रखा जाता है।
- इस वायरस के कारण रोगी की मौत हो जाने के बाद संक्रमण का खतरा रहता है और शव के संपर्क में आने से भी वायरस फैलता है।
- यह भी आशंका है कि संक्रमित चमगादड़ों के मल-मूत्र के संपर्क में आने से इबोला वायरस फैल सकता है।
इबोला से बचाव:
- उन जानवरों के मांस को ना खाएं, जिनसे इबोला वायरस फैलता है।
- इबोला वायरस से पीड़ित रोगी की देखभाल करते समय उसके खून, लार व शरीर से निकलने वाले अन्य पदार्थों से बचना चाहिए।
- इसके अलावा जागरुकता इबोला वायरस से बचने का सबसे अच्छा तरीका है।
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