डिप्रेशन को गलती से भी ना करें इग्नोर, हो सकती है ये गंभीर समस्या
मेरे एक फिजिसियन दोस्त ने बताया कि जब उन्होंने डिप्रेशन से ग्रसित एक व्यक्ति को ये कहा कि आपके सारे लक्षण डिप्रेशन नामक बीमारी के लगते हैं इसलिये आपको एक सायकायट्रिस्ट से मिलना चाहिए तो मरीज ने आश्चर्य और नाराजगी के साथ कहा डॉक्टर साहब ” क्या मैं आपको मानसिक रोगी नजर आता हूँ”? और मेरे फिजिशियन दोस्त ने बताया कि ऐसा अक्सर होता है।
10 प्रतिशत लोग ही स्पेशलिस्ट से लेते है सलाह
- किसी मरीज को सायकायट्रिस्ट से मिलने की बात कही जाती है तो वह नाराज हो जाता है। सवाल ये है कि ऐसा क्यों हुआ? इसकी दो प्रमुख वजह है पहली, मानसिक बीमारियों को लेकर फैली गलत धारणाएं,अज्ञानता और दूसरा मानसिक बीमारियों से जुड़ा स्टिग्मा। स्टिग्मा मतलब “लांछित” महसूस करना। आपको ये जानकर बड़ी हैरानी होगी कि कुल मानसिक रोगियों का केवल 10 प्रतिशत लोग ही सायकायट्रिस्ट से सलाह लेते हैं। कारण है ऊपर बताई दोनो वजह।
काफी खतरनाक रोग है डिप्रेशन
- मनोचिकित्सा में, इलाज़ में देरी की वजह चाहे स्टिग्मा हो या अज्ञानता, इसके परिणाम बहुत ही गम्भीर होते हैं। इसको हम उदाहरणों से समझते है। मेरे पास एक बुजुर्ग व्यक्ति अपने 24 साल के बेटे को लेकर आये। उन्होंने बताया कि उनके बेटे का आजकल किसी काम में मन नहीं लगता, नींद नहीं आती है, पूरे दिन थकान रहती है, आनावश्यक डर लगता है, आत्मविश्वास में कमी आ गयी है और आजकल तो ये मरने की बातें भी करने लग गया है आदि।
जानकारी के अभाव में बढ़ जाता है यह रोग
मैंने उनको बताया कि अमुक लक्षण डिप्रेशन नामक बीमारी के हैं। जब और आगे मैंने पूछा तो उन्होंने बताया कि उनके बड़े बेटे ने आत्महत्या कर ली थी, कुछ साल पहले और इसी डर से वो अबकी बार छोटे बेटे को लेकर आएं हैं। मैंने कहा आपने बड़े बेटे का इलाज करवाया? उन्होंने रोते हुए कहा कि साहब हमने बड़े बेटे का इलाज डॉक्टर से नहीं कराया था। मैंने पूछा क्यों नहीं कराया इलाज़ डॉक्टर से ? उन्होंने कहा हमें ये शुरू में पता ही नहीं था कि ये कोई बीमारी है, हम तो देवी देवताओं और झाड़ फूंक में ही लगे रहे और किसी सज्जन ने मनोचिकित्सक से मिलने की सलाह भी दी की बेटे को मनोचिकित्सक को दिखाओ तो हमने नहीं मानी। ये कह के टाल दिया कि हमारा बेटा कोई पागल थोड़े ही है जो इसको सायकायट्रिस्ट को दिखाए और बड़े बेटे में भी कुछ इसी तरह के लक्षण थे। वो भी उदास बैठा रहता था और एक दिन उसने कीटनाशक खाकर जान दे दी। इस बार हम कोई गलती नहीं करना चाहते इसीलिए सीधे आपके पास आये।
शिक्षित लोगों में भी है ये कमी
आपने देखा कि अज्ञानता और स्टिग्मा कितना खतरनाक हो सकता है। ऐसा नहीं है कि स्टिग्मा केवल ग्रामीण परिवेश के कम पढ़े लिखे लोगों में ही देखने को मिलता है। शहर के पढ़े लिखे और अमीर लोगों में भी काफी देखने को मिलता है। मैंने ऐसे कई मरीज देखे हैं जो डिप्रेशन का इलाज सालों तक सायकायट्रिस्ट से न लेकर किसी अन्य डॉक्टर से ले रहे होते है, और ना ही कभी पूरी तरह से ठीक हो पातें हैं जो कि लाजमी हैं। जैसे हार्ट के डॉक्टर ब्रेन ट्यूमर का ऑपेरशन तो नहीं कर सकते न या फिर कोई अपना दांत ठीक कराने के लिए, कारपेंटर के पास थोड़े ही जाता है।
इस रोग को लेकर काफी भ्रांतियां है
लोगों की एक बहुत बड़ी गलत अवधरणा ये होती है कि सायकायट्रिस्ट तो बस नींद की दवा देते हैं, इलाज तो कुछ है नहीं, जो कि बिल्कुल गलत है। लोग ऐसा इसलिए सोचते हैं,क्यों कि जब किसी मानसिक समस्या का इलाज शुरू करते हैं तो शुरू के दो चार दिन नींद बढ़ती है और लोग इसी बढ़ी हुई नींद से घबरा जाते हैं। ये बिल्कुल उसी तरह है जैसे सर्जरी करवाने के बाद शूरू के कुछ दिन आपको दिक्कतों का सामना करना पड़ता है पर जल्दी ही आराम मिलने लगता है। कुछ लोग सायकायट्रिस्ट से मिलने से इस लिए भी डरते हैं कि अगर एक बार दवा शूरु हो गयी तो कभी बन्द नहीं होती। ऐसा सोचना भी गलत है। कुछ बीमारियों जैसे स्कीजोफ्रेनिया आदि में लंबे समय तक दवा चल सकती है अन्यथा ज्यादातर अन्य मनोविकारों में दवा बन्द हो जाती है, अगर आपने अपने सायकायट्रिस्ट की बात को मानते हुए आगे बढ़ते हैं।
अचानक से दवा को ना करें बंद
कभी कभी कुछ लोग बीच बीच में दवा को अचानक बन्द करके ये जांचने की कोशिश करते हैं कि देखते हैं कि मैं ठीक हुआ या नहीं? जो कि गलत है। कभी भी मनोचिकित्सा में काम में ली जाने वाली दवा को एक साथ अचानक बन्द न करें। जब भी दवा बन्द करनी हो तो धीरे धीरे बन्द करें। अगर अचानक दवा बन्द करेंगे तो उसके गलत परिणाम सामने आएंगे और जब ये गलत परिणाम सामने आते हैं तो वो ये सोचने लगते हैं कि मैं तो इतने महीने दवा लेने के बाद भी ठीक नहीं हुआ ? मुझे तो इन दवाओं की आदत पड़ गयी है, मैनें तो एक ही दिन दवा बन्द करी और मुझे नींद नहीं आयी इसका मतलब मुझे इन दवाओं की लत पड़ गयी है। पर ऐसा नहीं है।
ये लक्षण दिखें तो तुरंत डॉक्टर से लें परामर्श
आपके जो भी संदेह हो अपने सायकायट्रिस्ट से जरूर पूछे पर खुद ही निर्णय न करें। अगर आपके आसपास किसी में भी कोई असामान्य व्यवहार दिखे या सभी जांचे कराने के बाद भी कोई बीमारी सामने नहीं आती है तो आपको एक बार सायकायट्रिस्ट से जरूर मिलना चाहिए। क्योंकि चिंता या टेंशन से जुड़ी बीमारियां अक्सर जांचों में नहीं आती हैं। अगर कोई चिंता,तनाव या अन्य मानसिक समस्या है उसे छुपाएं नहीं, तुरंत आयु पर मौजूद सायकायट्रिस्ट से घर बैठे लें सलाह।
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