Corona Brief News: भारतीय कोरोना वैक्सीन दुनिया के आधे बच्चों को लगा चुकी टीका, रोड़ा बन रहा है ‘वैक्सीन राष्ट्रवाद’?
Coronavirus Vaccine: कोरोना वैक्सीन पर ऑक्सफ़ोर्ड के साथ काम कर रही भारतीय कंपनी अब तक दुनिया के आधे बच्चों के टीके लगा चुकी है, हालांकि पूणे के सीरम इंस्टीट्यूट की ये वैक्सीन ट्रायल के अभी तीसरे फेज में है, अगर इसका ट्रायल सफल होता है तो सीरम इंस्टीटयूट् के सीईओ अदार पूनावाला दुनिया के सबसे पॉवरफुल व्यक्ति बन जाएंगे। दूसरी ओर, कोविड 19 के खात्मे की राह में ‘वैक्सीन राष्ट्रवाद’ रोड़ा बनता जा रहा है।
1.भारतीय कोरोना वैक्सीन दुनिया के आधे बच्चों को लगा चुकी टीके
- एस्ट्राजैनेका डील के तहत ऑक्सफ़ोर्ड के साथ काम कर रही सेरम इंस्टीट्यूट, कम और मध्य इनकम वाले देशों के लिए 100 करोड़ डोज बना सकती है
- अदार पूनावाला के मुताबिक, भारत और दुनिया के बीच बांटेंगे 50-50 के अनुपात से वैक्सीन, गरीब देशों पर ज्यादा रहेगा फोकस
कोरोनावायरस वैक्सीन पर ऑक्सफ़ोर्ड के साथ काम कर रही पूणे के सेरम इंस्टीट्यूट ने एक बड़ा दांव लगाया है। सेरम इंस्टीट्यूट कोरोना वैक्सीन के लाखों डोज बनाने जा रही है। हालांकि, जिस वैक्सीन को सेरम इंस्टीट्यूट तैयार करने वाला है, वो अभी भी ट्रायल फेज में है। अगर यह वैक्सीन काम कर गई तो कंपनी के सीईओ पूनावाला दुनिया के सबसे प्रभावशाली व्यक्ति बन जाएंगे।
2. कोविड 19 के खात्मे की राह में क्यों रोड़ा बन रहा है ‘वैक्सीन राष्ट्रवाद’?
कोरोना वायरस संक्रमण (Corona virus Transmission) के केसों और 6 लाख 85 हज़ार से ज़्यादा मौतों के आंकड़े के बाद पूरी दुनिया की ज़रूरत एंटी Covid-19 वैक्सीन ही है। हर कोने को वैश्विक महामारी (Pandemic) के दौर में मानवता के लिए एक वैक्सीन की उम्मीद है और इस उम्मीद के पूरे होने के बीच सबसे बड़े रोड़े के रूप में सामने आ रहा है वैक्सीन राष्ट्रवाद! मालूम हो, यह शब्द 2009 में H1N1 महामारी के समय शब्दकोष में जुड़ा था, लेकिन तब बड़ी किफायत से इस्तेमाल होता था।
वैक्सीन राष्ट्रवाद क्या है?
वैक्सीन निर्माता कंपनियों के साथ मिलकर उत्पादन से पहले ही वैक्सीन के डोज़ अपने देश के लोगों या नागरिकों के लिए सुरक्षित करने को वैक्सीन राष्ट्रवाद के दायरे में समझा जाता है।
कुछ देश तो देश को वैक्सीन में प्राथमिकता देने के लिए निर्माताओं को अन्य देशों में वैक्सीन बेचने के लिए प्रतिबंधित भी करने लगे हैं। ऐसे में क़यामत उन देशों पर टूटना तय है, जो गरीब होने के कारण वैक्सीन बनाने और खरीदने में सक्षम नहीं होंगे।
आईसीएमआर से हाल में हुई एक कॉन्फ़्रेंस में दुनिया के मशहूर वायरोलॉजिस्ट पीटर पायट ने कहा कि दुनिया में बहुत कम देश वैक्सीन उत्पादन की क्षमता रखते हैं।
ऐसे में अगर कोई ये कहने लगे कि ये मेरे देश की वैक्सीन है इसलिए मेरे देश के लोगों के लिए ही है तो! जब तक एक देश में भी कोरोना संक्रमण बना रहेगा, तब तक पूरी दुनिया के सामने संक्रमण का खतरा बना रहेगा।
3.कोरोना वायरस कितना खतरनाक हो सकता है ट्रेन में?
कोरोना के बीच अनलॉकिंग का दायरा बढ़ाया जा रहा है। ट्रेनों में कोरोना संक्रमण को लेकर हुई स्टडी में सामने आया है कि कितनी लंबी दूरी की ट्रेन में कितनी दूरी के बाद भी कोरोना संक्रमण फैला। इस दौरान अलग-अलग चीजों को ध्यान में रखा गया।
जैसे हर सीट पर बैठे यात्री के प्रभावित होने का कितना डर होता है। इसमें निकलकर आया कि कोरोना के मरीज से पांच सीट आगे-पीछे लोगों से लेकर आजू-बाजू की तीन सीटों तक पर बैठे यात्रियों में संक्रमण का औसत 0.32 प्रतिशत होता है। वहीं अगर कोई यात्री बीमार के बगल में ही बैठा हो तो उसे संक्रमण का खतरा सबसे ज्यादा 3.5 प्रतिशत तक होता है।
क्या निकला नतीजा
स्टडी में इस बात को भी अनदेखा नहीं किया गया कि अगर किसी सीट पर पहले बीमार और फिर स्वस्थ यात्री बैठे तो क्या हो सकता है. इसमें पाया गया कि खतरा तो तब भी है लेकिन ये 0.075% रह जाता है. साथ ही जो यात्री कोरोना मरीज की कतार में बैठे हुए हैं तो उन्हें संक्रमण का खतरा 1.5 प्रतिशत रहता है
4..कोरोना संक्रमण से ठीक हुए 67 असम के पुलिसकर्मियों ने डोनेट किया प्लाज्मा
कोरोना वायरस के संक्रमण के कारण स्वास्थ्य विभाग को मरीज़ों के इलाज के लिए प्लाज्मा की बेहद जरूरत है। ऐसे में असम पुलिस के 67 जवानों ने प्लाज्मा डोनेट किया है।
गुवाहाटी के जीएमसीएच ऑडोटोरियम में राज्य स्वास्थ्य विभाग और राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन के साथ मिलकर असम पुलिस ने प्लाज्मा डोनेशन कैंप रविवार को आयोजित कराया गया. कुल 67 पुलिस कर्मियों में 43 पुलिसकर्मी प्लाज्मा डोनेशन के लिए योग्य पाए गए.
इस मौके पर राज्य स्वास्थ्य मंत्री हिमंता बिस्वा सरमा ने कहा कि असम पुलिस ने कोविड-19 के खिलाफ लड़ाई में सबसे आगे लड़ रहे हैं. उन्होंने कहा, ”असम पुलिस लोगों की जान बचाने को प्लाजमा डोनेट करने के लिए आगे आई. बलिदान और असम पुलिस के योगदान को सुनहरे अक्षरों से लिखा जाएगा।
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