Colorectal Cancer: कोलोरेक्टल कैंसर क्या है?, लक्षण और इलाज
बड़ी आंत के कैंसर को कोलन या कोलोरेक्टल कैंसर भी कहते है। यह कैंसर बड़ी आंत (कोलन) या रैक्टम (गैस्ट्रो इंटेस्टाइनल के अंतिम भाग) में होता है। दुनियाभर में यह कैंसर तेजी से फैल रहा है। इस कैंसर की शिकायत होने पर पेट से जुड़ी प्रॉब्लम्स जैसे इरीटेबल बाउल सिंड्रोम, बवासीर या कब्ज की समस्या होती है। आइये आपको बताते है कोलोरेक्टल कैंसर क्या है?, कोलोरेक्टल कैंसर के लक्षण और कोलोरेक्टल कैंसर का इलाज।
कोलोरेक्टल कैंसर क्या है?: What is Colorectal Cancer in Hindi
कोलोरेक्टल कैंसर की शुरुआत बड़ी आंत की दीवार के सबसे भीतरी परत से होती है। अधिकांश कोलोरेक्टल कैंसर छोटे पॉलीप्स से शुरू होते है। पॉलीप्स कोशिकाओं के समूह को कहते है। धीरे-धीरे यह पॉलीप्स कैंसर में विकसित हो जाते है। यह कैंसर पहले बड़ी आंत की दीवार में, फिर आसपास के लिंफ नोड्स में फिर पूरे शरीर में फैलता है।
कोलोरेक्टल कैंसर के लक्षण: Colorectal Cancer Symptoms:
- मल त्याग की आदतों में परिवर्तन; लगातार दस्त होना
- लगातार कमजोरी या थकान महसूस करना और भूख ना लगना।
- वजन कम होना।
- हीमोग्लोबिन में कमी (एनीमिया)।
- पेट में दर्द या बेचैनी।
- मल में लाल या काले रंग का खून का धब्बा जमना।
कोलोरेक्टल कैंसर के कारण और जोखिम कारक:
कभी-कभी कोशिका के विभाजन के दौरान एक स्वस्थ कोशिका के डीएनए में बदलाव आ जाता है। इससे उस कोशिका में अनियंत्रित विकास होता है जो कैंसर बनता है। कोलोरेक्टल कैंसर के जोखिम कारक से मतलब ऐसी चीज जो कैंसर होने का खतरा बढ़ाती है। यह सिर्फ और सिर्फ जोखिम बढ़ाता है। आइये जानते है ऐसे ही कुछ जोखिम कारक।
- वृद्धावस्था
- पश्चिमी आहार (अत्यधिक वसायुक्त आहार, लाल मांस और प्रोसेस्ड मांस से भरपूर आहार; कम फाइबर वाला आहार)
- कोलोरेक्टल पॉलीप्स का इतिहास (एडिनोमेटस पॉलीप, बड़े पॉलीप्स और अनेक पॉलीप्स)
- कोलोरेक्टल कैंसर का पारिवारिक इतिहास (एक तिहाई कोलोरेक्टल कैंसर के मरीजों के परिवार के सदस्यों में यह बीमारी होती है)
- कोलोरेक्टल कैंसर का पिछला इतिहास (यदि आपका पहले कोलोरेक्टल कैंसर के लिए इलाज हुआ है)
कोलन की सूजन आंत्र रोग (inflammatory bowel disease); अल्सरेटिव कोलाइटिस और क्रोहन (Crohn’s ) रोग (कैंसर का खतरा अवधि और गंभीरता के साथ बढ़ जाता है) - मधुमेह (डायबिटीज)
- मोटापा
- धूम्रपान और शराब का सेवन
आनुवांशिक जोखिम कारक (वंशानुगत संलक्षण): GENETIC RISK FACTORS
कोलोरेक्टल कैंसर के रोगियों के एक छोटे प्रतिशत, (लगभग 5%) में जीन परिवर्तन होता है जो अनुवांशिक होता है और जोखिम को बढ़ाता है।
वंशानुगत कोलोन कैंसर सिंड्रोम है:
हेरेडिटरी नॉनपोलिपोसिस कोलोरेक्टल कैंसर (HNPCC): HNPCC, जिसे लिंच सिंड्रोम भी कहते है, कोलन कैंसर और कुछ अन्य कैंसर के जोखिम को बढ़ाता है। एचएनपीसीसी वाले लोगों को 50 वर्ष की आयु से पहले कोलोरेक्टल कैंसर होता है।
फैमिलियल एडिनोमेटस पॉलीपोसिस (FAP): FAP एक दुर्लभ रोग है जिसके कारण बड़ी आंत में हजारों पॉलिप्स बन जाते है। FAP से पीड़ित लोगों में 40 वर्ष की आयु से पहले कोलोरेक्टल कैंसर होने का खतरा होता है।
कोलोरेक्टल कैंसर का इलाज: Colorectal Cancer Treatments:
स्थानीयकृत (सीमित) बीमारी का उपचार – सर्जरी
बड़ी आंत के कैंसर का उपचार ट्यूमर की स्टेज और स्थान पर निर्भर करता है। इसमें बड़ी आंत के कैंसर वाले हिस्से को आसपास के लिंफ नोड्स के साथ निकाला जाता है फिर आंत के कटे हुए हिस्सों को आपस में जोड़ कर आंत की निरंतरता को पुन: स्थापित करते है।
कभी-कभी, जब ऊतक (टिश्यू) स्वस्थ नहीं होते है, तो एनास्टोमोसिस के जुड़ने की संभावना नहीं होती। ऐसे मामलों में, आंत को पेट के ऊपर खोल दिया जाता है जिसे ओस्टोमी (इलेओस्टोमी या कोलोस्टोमी) कहा जाता है। यह अस्थायी होती है और रोगी की स्थिति में सुधार और कीमोथेरेपी (यदि आवश्यक हो) के बाद बंद कर दी जाती है।
कोलन कैंसर के लिए शल्यक्रिया – कोलेक्टॉमी (COLECTOMY):
कोलन कैंसर के ऑपरेशन को पार्शियल कोलेक्टॉमी कहा जाता है। इस सर्जिकल प्रक्रिया का कोलन के निकाले गए हिस्से के आधार पर विभिन्न नाम है जैसे राइट हेमिकोलेक्टॉमी, लेफ़्ट हेमिकोलेक्टोमी, सिग्मोइडेक्टॉमी, ट्रांस्वर्स कोलेक्टॉमी, राइट या लेफ़्ट एक्सटेंडेड हेमिकोलेक्टोमी और एंटीरियर रिसेक्शन।
बढ़े हुए रेक्टल ट्यूमर में सर्वोत्तम परिणाम प्राप्त करने के लिए कीमोथेरेपी, रेडियोथेरेपी और सर्जरी को संयोजित (कंबाइन) किया जाता है जिसे मल्टीमॉडल उपचार कहते है। वर्तमान में रेक्टल कैंसर के उपचार में कीमोथेरेपी या कीमोरेडियोथेरेपी पहले दी जाती है जिसे नियोएडजुवेंट (neoadjuvant) उपचार कहा जाता है, इसके बाद सर्जरी की जाती है।
रेक्टल कैंसर की सर्जरी में, मलाशय के कैंसर वाले हिस्से को स्वस्थ ऊतकों (टिश्यू) तक आसपास के लिंफ नोड्स के साथ ऑपरेशन द्वारा निकाला जाता है। सर्जिकल प्रक्रिया को विभिन्न नामों के साथ पहचाना जाता है जो मलाशय के निकाले गए भाग के आधार पर होते है; एंटीरियर रिसेक्शन, लो एंटीरियर रिसेक्शन, अल्ट्रा-लो एंटीरियर रिसेक्शन या एब्डोमिनोपेरीनियल रिसेक्शन।
आंत के कटे हुए हिस्सों को या तो आपस में जोड़कर आंत की निरंतरता को पुन: स्थापित करते है (एनास्टोमोसिस) या फिर आंत को पेट के ऊपर खोल दिया जाता है जिसे कोलोस्टोमी कहा जाता है।
सर्जरी से पहले एक महत्वपूर्ण जानकारी की जरूरत है कि ट्यूमर गुदा के कितना करीब है। कोलोस्टॉमी करने या ना करने का निर्णय ट्यूमर से गुदा की दूरी और फसाव पर निर्भर करता है।
कभी कभी, पूरे बृहदान्त्र (कोलोन) को हटा दिया जाता है। यह उन रोगियों में किया जाता है जिन रोगियों का बचा हुआ कोलन का हिस्सा भी पॉलीप्स, इंफ्लेमेटरी बाउल डिजीज या आंत में रुकावट से ग्रसित होता है।
कोलोरेक्टल कैंसर के ऑपरेशन करने के तरीके:
- ओपन सर्जरी
- लेप्रोस्कोपिक सर्जरी
ओपन सर्जरी: ओपन सर्जरी में पेट में लंबा चीरा लगाया जाता है।
लेप्रोस्कोपिक सर्जरी: यह ऑपरेशन करने की एक विशेष तकनीक है, जिसे की-होल सर्जरी, मिनिमली इनवेसिव सर्जरी या मिनिमल एक्सेस सर्जरी के रूप में भी जाना जाता है। इसमें, बड़े चीरे की जगह, आपके पेट के ऊपर छोटे छोटे छेदों द्वारा विशेष उपकरणों और एक कैमरे को डालकर ऑपरेशन किया जाता है। यह उपकरण विशेष बनावट से पतले एवं लंबे बनाए जाते है।
कैमरा एक बड़ी स्क्रीन पर आपके पेट के अंदर की उच्च रिज़ॉल्यूशन छवियों को प्रोजेक्ट करता है, जिसे देखकर सर्जन पेट के अंदर ऑपरेशन करते है। यह तकनीक पिछले कुछ दशकों में सर्जिकल फील्ड के सबसे महत्वपूर्ण अविष्कारों में से एक है जिसने पेट की सर्जरी के क्षेत्र में क्रांति ला दी है। सर्जरी की यह तकनीक अब पेट के ज़्यादातर ऑपरेशन्स के लिए उपलब्ध एवं मान्य है। इस तकनीक का उपयोग पेट के कैंसर के ऑपरेशन में भी लाभदायक है।
लेप्रोस्कोपिक सर्जरी के लाभ:
पेट की ओपन सर्जरी में बड़ा चीरा लगता है और इसकी वजह से ठीक होने में वक़्त लगता है और अस्पताल में लंबे समय तक रहना पड़ता है। मिनिमली इनवेसिव सर्जरी का मतलब है “कम दर्द”, “न्यूनतम निशान” और “तेज़ रिकवरी”। आईसीयू और अस्पताल में कम रहना पड़ता है। बड़े मॉनिटर पर पेट के अंदर का दृश्य बड़ा होने के कारण सर्जरी के दौरान रक्त की हानि कम होती है। आप जल्दी से चलना और मुँह से खाना शुरू कर सकते है। ओपन सर्जरी की तुलना में इन्फेक्शन और हर्निया का खतरा भी कम होता है।
कैंसर कभी-कभी कोलन को अवरुद्ध कर सकता है। ऐसे मामलों में, रुकावट को दूर करने, रोगी की स्थिति में सुधार लाने और फिर सर्जरी करने के लिए एक स्टेंट लगाया जाता है। यदि स्टेंट नहीं लगाया जा सकता या उपलब्ध नहीं है, तो सीधे सर्जरी की जाती है। ऐसे मामलों में, आमतौर पर, आंत के सिरों को फिर से जोड़ा नहीं जाता, बल्कि ऑस्टॉमी के रूप में बाहर लाया जाता है। रोगी के स्वास्थ्य में सुधार होने पर, आंत के सिरों को बाद में एक दूसरे ऑपरेशन में फिर से जोड़ा जाता है।
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