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बाइपोलर डिसऑर्डर ( Bipolar Disorder) क्या है, लक्षण और बचाव

बाइपोलर डिसऑर्डर ( Bipolar Disorder) क्या है, लक्षण और बचाव

1. बाइपोलर डिसआर्डर क्या है( What is Bipolar Disorder)?

यह एक मानसिक बीमारी है, जिसमे मन लगातार कई हफ़्तो तक या कई बार महिनों तक उदास रहता है या बहुत खुश रहता है | उदासी में नकारात्मक विचार तथा मैनिया में मन में हमारे पहुँच पाने से ज्यादा विचार आते है। यह बीमारी लगभग 100 में से एक व्यक्ति को जीवन में कभी ना कभी होती ही है | इस बीमारी की शुरुआत अक्सर 14 साल से 19 साल के बीच होती है| इस बीमारी से पुरुष तथा महिलाएँ दोनों ही समान रूप से प्रभावित होते हैं | यह बीमारी 40 साल के बाद बहुत कम शुरु होती है।

2. बाइपोलर डिसऑर्डर के अलग-अलग रूप (Different types of Bipolar Disorder):

बाईपोलर एक: इस प्रकार की बीमारी में कम से कम एक बार मरीज में अत्यधिक तेजी, अत्यधिक ऊर्जा, अत्यधिक ऊत्तेजना तथा बढ़-चढ़कर बाते करने का दौर है। यह 3-6 महीने तक रहता है। इलाज ना मिलने पर भी मरीज अपने आप ठीक हो जाता है। इस प्रकार की बीमारी का दूसरा रूप कभी भी मन में उदासी के रूप मे आ सकता है। उदासी लगातार दो हफ़्ते से अधिक रहने पर डिप्रेशन में बदल जाता है।

बाईपोलर दो: इस प्रकार की बीमारी में मरीज को बार-बार उदासी (डिप्रेशन) का प्रभाव होता है।

रैपिड साइलिक: इस प्रकार की बीमारी में मरीज को एक साल में कम से कम चार बार उदासी (डिप्रेशन) या मैनिया का असर होता है।

3. बाइपोलर डिसऑर्डर के कारण (Reasons of Bipolar Disorder)

इस बीमारी का मुख्य कारण सही रूप से बता पाना कठिन है। वैज्ञानिक समझते है कि कई बार शारीरिक रोग भी मन में उदासी दे सकता है। कई बार अत्यधिक मानसिक तनाव इस बीमारी की शुरुआत हो सकती है।

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4.बाइपोलर डिसऑर्डर के लक्षण (Symptoms of Bipolar Disorder)

एक रूप उदासी (डिप्रेशन): इसमें मरीज के मन में अत्यधिक उदासी, कार्य में अरुचि, चिड़चिड़ापन, घबराहट, आत्मग्लानि, भविष्य के बारे में निराशा, शरीर में ऊर्जा की कमी, अपने आप से नफ़रत, नींद की कमी, सेक्स करने की इच्छा की कमी, मन में रोने की इच्छा, आत्मविश्वास की कमी लगातार बनी रहती है। मन में आत्महत्या के विचार आते हैं। मरीज की कार्य करने की क्षमता कम हो जाती है। कभी कभी मरीज का बाहर निकलने का मन भी नहीं करता। किसी से बातें करने का मन नहीं करता। इस प्रकार की उदासी जब दो हफ़्तो से अधिक रहे तब आपको डॉक्टर से परामर्श लेना चाहिए।

दूसरा रूप है मैनिक: इस प्रकार के रूप में मरीज के लक्षण कई बार इतने अधिक बढ़ जाते हैं कि मरीज का वास्तविकता से संबंध नहीं रह पाता। मरीज को बिना किसी कारण कानों में आवाजें आने लगती है। मरीज अपने आपको बहुत बड़ा समझने लगता है। मरीज मन में अत्यधिक तेजी के कारण इधर उधर भागता रहता है, और उसकी नींद और भूख कम हो जाती है।

दोनो रूप के बीच: मरीज अक्सर उदासी (डिप्रेशन) के बाद सामान्य हो जाता है। मरीज काफ़ी समय तक, सालों तक सामान्य रह सकता है तथा अचानक उसे उदासी हो सकती है।

5. बाइपोलर डिसऑर्डर का इलाज (Treatment of Bipolar Disorder)

इस बीमारी के इलाज के दो पहलू है :

  1. मरीज के मन को सामान्य रूप में रखना
  2. इलाज के द्वारा मरीज को होने वाले मैनिक तथा उदासी को रोकना

मन को सामान्य रखने के लिये कई प्रभावशाली दवाएँ दी जा सकती है। इस प्रकार की दवा को “मूड स्टैवलाइजिंग” दवा कहते हैं। इसमें “लीथियम” नामक दवा काफ़ी प्रभावकारी तथा लाभकारी होती है। इस दवा का प्रयोग करते समय कई बातों का ध्यान रखना चाहिए जैसे मरीज को नियमित रूप से अपने रक्त की जाँच करवाते रहना चाहिए। मरीज को यदि गर्मी में पसीना आए तब पानी का प्रयोग अधिक करना चाहिए।

मरीज को इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि जब एक बार लीथियम शुरू करते हैं तो इसे लगातार लंबे समय तक लेना चाहिए तथा बिना डॉक्टर की सलाह के अचानक इसे बन्द नहीं करना चाहिए। लीथियम को मानसिक डॉक्टर के द्वारा ही शुरू किया जाना चाहिए। रक्त में लीथियम की जाँच के द्वारा दवा की खुराक मानसिक चिकित्सक के द्वारा निर्धारित की जाती है।

6. लिथियम की दवा के हानिकारक प्रभाव 

अधिक प्यास लगना, वजन बढना, हाथों में हल्की कम्पन आना आदि। इसके दुष्प्रभाव हो सकते है। काफ़ी समय तक इसको लेते रहने से गुर्दे व थाइराइड नामक ग्रन्थी प्रभावित हो सकती है। इसके रोकथाम के लिए मरीज को नियमित रूप से रक्त की जाँच करवाते रहना चाहिए।   

दूसरे मूड स्टैबलाइजर: लीथियम के अतिरिक्त सोडियम वैल्प्रोएट भी “मूड स्टैबलाइजर”  के रूप में काफ़ी प्रभावकारी व लाभदायक है। इसके अतिरिक्त “कारबामेजेपीन” भी लाभदायक है। इसका प्रभाव “लीथियम” से कम पाया गया है। कभी कभी मरीज को एक से अधिक “मूड स्टैबलाइजर” की भी आवश्यकता पड़ सकती है। मूड स्टैबलाइजर शुरु करने से पहले अपने मनोचिकित्सक से परामर्श लें। किस मरीज को कौन सा “मूड स्टैबलाइजर” प्रयोग करना है यह बहुत महत्वपूर्ण निर्णय होता है।

यदि मरीज इन दवाओं का प्रयोग करता है तो उसको मैनिया या डिप्रेशन की बीमारी होने की संभावना 30 से 40 प्रतिशत कम हो जाती है। दवा मैनिया तथा डिप्रेशन को रोकने मे कितना प्रभावशाली होगी यह काफ़ी हद तक इस बात पर निर्भर करता है कि मरीज को अब तक कितनी बार मैनिया तथा डिप्रेशन की बीमारी हो चुकी है।  जैसे-जैसे मरीज को बार बार मैनिया की बीमारी होती है वैसे-वैसे दवा का प्रभाव भी कम हो सकता है।

यदि किसी मरीज को 5 से अधिक बार मैनिया की बीमारी हो चुकी है तो 40 प्रतिशत खतरा होता है कि मरीज के मैनिया की बीमारी दोबारा से एक साल के अन्दर फ़िर हो जाएगी। यदि मरीज लीथियम लेता रहता है तब यह खतरा केवल 28 प्रतिशत रह जाता है। इसलिए मरीज को “मूड स्टैबलाइजिग” दवा अक्सर पहली बार मैनिक बीमारी के बाद शुरु कर देना चाहिए। यदि किसी को मैनिया की बीमारी दो बार हो चुकी है तब इसकी फ़िर से होने की संभावना 80 प्रतिशत ही रह जाती है।

मरीज को “मूड स्टैबलाइजर” शुरु करने के बाद कम से कम दो साल तक लेना चाहिए। कुछ मरीजों को यह दवा 5 साल तक या और भी अधिक लंबे समय तक लेना पड़ सकता है।

7. साइकोलॉजी इलाज (Psychological Treatment) 

मूड स्टैबलाइजर के अतिरिक्त साइकोलाजिकल इलाज भी लाभदायक हो सकता है। इसके इलाज में मरीज को बीमारी के बारे मे जानकारी, मन के अन्दर उदासी व तेजी को पहचानना तथा उसको सामान्य रखने के उपाय बताए जाते है।

गर्भवती : औरत को सावधानी के रूप में अपने मनोचिकित्सक से पहले से परामर्श लेना चाहिए। गर्भवती औरत मे लीथियम जैसी दवा पहले तीन महीने मे बच्चे को हानिकारक प्रभाव पहुँचा सकती है। यह दवा अक्सर शुरु के 6 महीने गर्भवती औरत को नहीं लेनी चाहिए।

8. बीमारी के दूसरे रूप मैनिया या डिप्रेशन का इलाज

डिप्रेशन: इसके इलाज के लिए ऐन्टीडिप्रेसेन्ट अक्सर मूड स्टैबलाइजर के साथ दी जाती है। आजकल सबसे अधिक सिरोटिन नामक कैमिकल को प्रभावित करने वाले ऐन्टीडिप्रेसेन्ट प्रयोग किये जाते हैं। ऐन्टीडिप्रेसेन्ट, शुरु के एक से दो हफ़्तो मे प्रभावशाली नहीं होते। जब मरीज इस दवा से लाभ पाने लगे तो इस दवा को लेते रहना चाहिए। इसे बन्द ना कर दें। यदि मरीज को बार-बार डिप्रेशन की बीमारी होती है तथा मैनिया कम होता है तो मरीज को डिप्रेशन ठीक होने के बाद मूड स्टैबलाइजर के साथ ऐन्टीडिप्रेसेन्ट लेते रहना चाहिए। ऐन्टीडिप्रेसेन्ट डिप्रेशन ठीक होने के बाद कब बंद करना है, इसके लिए मरीज को अपने मनोचिकित्सक से परामर्श लेना चाहिए।

मैनिक बीमारी का इलाज: यदि मरीज को मैनिक बीमारी तब होती है जब मरीज ऐन्टीडिप्रेसेन्ट ले रहा है तो उसे ऐन्टीडिप्रेसेन्ट बन्द कर देनी चाहिए। मरीज के इलाज के लिए मूड स्टैबलाइजर या ऐन्टीसाइकोटिक को प्रयोग मे लाया जाता है। कुछ मरीजों को मूड स्टैबलाइजर व ऐटिपिकल ऐन्टीसाइकोटिक दोनों को एक साथ दिया जाता है | इसके कुछ महीनों बाद ऐन्टीसाइकोटिक को बन्द कर दिया जाता है तथा मरीज को ठीक होने के बाद भी मूड स्टैबलाइजर लेते रहना चाहिए।

अस्वीकरण

सलाह सहित इस लेख में सामान्य जानकारी दी गई है। यह किसी भी तरह से योग्य चिकित्सा राय का विकल्प नहीं है।अधिक जानकारी के लिए आज ही अपने फोन में आयु ऐप डाउनलोड कर घर बैठे विशेषज्ञ  डॉक्टरों से परामर्श करें। स्वास्थ संबंधी जानकारी के लिए आप हमारे हेल्पलाइन नंबर 781-681-11-11 पर कॉल करके भी अपनी समस्या दर्ज करा सकते हैं। आयु ऐप हमेशा आपके बेहतर स्वास्थ के लिए कार्यरत है। 

 
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