Corona Brief News: कोरोना की स्वदेशी वैक्सीन का जानवरों पर हुआ सफल परीक्षण
Coronavirus Vaccine India: वैक्सीन बनाने वाली देसी कंपनी भारत बायोटेक (Bharat Biotech) ने कोविड-19 वैक्सीन कोवैक्सिन का जानवरों पर परीक्षण सफल रहने का ऐलान किया है।
आईसीएमआर और भारत बायोटेक के विशेषज्ञ मिलकर कोरोना की स्वदेशी वैक्सीन ”कोवैक्सीन” पर काम कर रहे हैं। इसके ट्रायल के दूसरे चरण को भी मंजूरी मिल गई है।
1. कोवैक्सिन का जानवरों पर ट्रायल कामयाब रहा
भारत बायोटेक ने ट्वीट करके बताया कि ”भारत बायोटेक गर्व से ‘कोवैक्सीन‘ के एनिमल स्टडी के रिजल्ट की घोषणा करता है। यह रिजल्ट लाइव वायरल से प्रोटेक्ट करता है और इम्यून सिस्टम को मजबूत बनाता है।”
कंपनी के बयान के मुताबिक, बंदरों पर स्टडी के नतीजों से वैक्सीन की इम्यनोजनिसिटी यानी प्रतिरक्षा का पता चलता है। कंपनी ने मकाका मुलाटा प्रजाति के खास तरह के बंदरों को वैक्सीन की डोज दी थी।
ज्ञात हो, इस वक्त भारत में कोरोना की तीन वैक्सीन पर काम चल रहा है। गुजरात की कंपनी जायडस कैडिला हेल्थ केयर लिमिटेड और सीरम इंस्टिट्यूट पूणे दूसरे दौर का क्लीनकल ट्रायल पहले ही शुरू कर चुकी है। सीरम इंस्टिट्यूट ब्रिटेन के ऑक्सफ़ोर्ड यूनिवर्सिटी की तरफ से तैयार किए जा रहे वैक्सीन का ट्रायल भारत में कर रहा है। इस पर फिलहाल रोक लगा दी गई है।
2. कोविड-19 मरीज़ों को दी जाएगी प्लाज्मा थेरेपी
भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद (ICMR) की रिसर्च में प्लाज्मा थेरेपी कोविड-19 मरीज़ के इलाज में कारगर नहीं है, इसके बाद भी दिल्ली में कोविड-19 के मरीज़ों के इलाज में प्लाज्मा थेरेपी का इस्तेमाल किया जाएगा।
हालांकि दिल्ली के स्वास्थ्य मंत्री सत्येंद्र जैन के मुताबिक, आईसीएमआर (ICMR) ने यह बिल्कुल नहीं कहा कि प्लाज्मा थेरेपी का कोई लाभ नहीं है, बल्कि यह कहा है कि यदि किसी मरीज को वेंटिलेटर पर रखा जाता है तो शायद प्लाज्मा थेरेपी से कोई फायदा नहीं होगा।
हालांकि, इससे पहले कि कोई मरीज स्टेज 3 पर पहुंचे, उसे फायदा होता है। मंत्री का कहना है कि वह खुद इस थेरेपी की मदद से सही हुए हैं।
प्लाज्मा थेरेपी का असर-
- थेरेपी से उन मरीज़ों को थोड़ा फायदा हुआ जो सांस की समस्या और थकान से जूझ रहे थे
- इस थेरेपी का बुखार और खांसी के मरीज़ों पर कोई असर नहीं दिखाई दिया।
- ICMR ने देश के 39 अस्पतालों में 28 दिन तक किया ट्रायल, पाया कि प्लाज्मा थैरेपी और सामान्य इलाज में कोई अंतर नहीं
- एक्सपर्ट के मुताबिक प्लाज्मा सपोर्ट ट्रीटमेंट पहले भी था, आगे भी रहेगा, कोरोना के 2% से 5% मामलों में यह कारगर है
प्लाज्मा थेरेपी पर आईसीएमआर रिसर्च की जानकारी
ICMR ने ‘ओपन-लेबल पैरलल-आर्म फेज 2 मल्टीसेन्टर रेंडमाइज्ड कंट्रोल्ड ट्रायल’ (PLACID ट्रायल) में कुल 464 मरीज़ों पर प्लाज्मा थैरेपी के असर की जांच की। ट्रायल के लिए दो ग्रुप बनाए गए। इंटरवेंशन और कंट्रोल। यह स्टडी MedRxiv जनरल में छपी है।
प्लाज्मा डोनर के लिए जरूरी शर्तें
- उम्र 17 साल से ज्यादा और पूरी तरह से स्वस्थ हो
- कोविड 19 से पूरी तरह उबरने के 14 दिन बाद ही डोनेशन कर सकता है।
- डोनर में किसी भी तरह के लक्षण नहीं होने चाहिए।
- दान देने वाले के शरीर में ब्लड वॉल्यूम ज्यादा होना चाहिए।
3. ऑक्सफ़ोर्ड वैक्सीन का ट्रायल रूकने के क्या हैं मायने?
भारत में कोरोना वायरस की तीन वैक्सीन पर काम चल रहा है, ऑक्सफ़ोर्ड उनमें से एक है, जिसका ट्रायल रोका गया है। बाकी दो में सफलता मिलने की उम्मीद जताई जा रही है।
पब्लिक हेल्थ फाउंडेशन ऑफ इंडिया के अध्यक्ष डॉ. के श्रीनाथ रेड्डी के मुताबिक, ऑक्सफ़ोर्ड की वैक्सीन अभी खारिज नहीं हुई है। इसके एक वॉलंटियर की रीढ़ की हड्डी में कुछ परेशानी आई है, जिसके बाद सिर्फ ट्रायल रोका गया है।
इसकी जांच ऐसे वैज्ञानिक कर रहे हैं जो हमेशा वैक्सीन पर ही काम करते आए हैं। अगर इस जांच में पाया गाया कि ऐसा वैक्सीन के कारण हुआ है, या किसी अन्य वॉलंटियर में भी यह समस्या आई तो इसे खारिज कर दिया जाएगा।
ग़ौरतलब है कि कोरोना के बढते केस में भारत का रिकवरी रेट 77 प्रतिशत से भी ऊपर पहुंच गया है, वायरस से लोगों को बचाने के लिए चिकित्साकर्मी कई दवाइयों का प्रयोग कर रहे हैं। हांलांकि ICMR ने प्लाज्मा थैरेपी को ज्यादा कारगर नहीं बताया है।
ऑक्सफ़ोर्ड की वैक्सीन पर एक्सपर्ट्स की राय-
- ऑक्सफर्ड की वैक्सीन का ट्रायल रुका है, यह खारिज नहीं हुई है।
- जांच में अगर वैक्सीन गलत पाई गई तो ही खारिज होगी।
- दुनिया में कोरोना की 32 अन्य वैक्सीन पर भी काम चल रहा है। इसलिए निराश नहीं होना चाहिए।
4. चीन में नाक से दी जाएगी कोरोना की वैक्सीन
कोविड19 के संक्रमण से बचने के लिए दुनिया में कई वैक्सीन पर काम चल रहा है। हाल ही में चीन ने कोरोना वायरस की नाक से दी जाने वाली वैक्सीन की जानकारी दी है, इस वैक्सीन के ह्यूमन ट्रायल को भी मंजूरी मिल गई है। अमेरिकी कम्पनी एस्ट्राजेनेका की वैक्सीन के बाद चीन फिलहाल दूसरे पायदान पर है।
वैज्ञानिकों का दावा है कि अब ट्रायल में शामिल लोगों को इंजेक्शन के दर्द से राहत मिलेगी, उन्हें नेजल स्प्रे से वैक्सीन दी जाएगी। पहले फ्लू महामारी को रोकने के लिए नेजल स्प्रे वैक्सीन को विकसित किया गया था, यह उन बच्चों और युवाओं को दी जाती थी जो इंजेक्शन से बचना चाहते हैं।
चीन के विज्ञान मंत्रालय के मुताबिक, नेजल स्प्रे में फ्लू का कमजोर स्ट्रेन वाला वायरस है, जिसमें कोरोना का स्पाइक प्रोटीन है। जब यह वैक्सीन नाक में पहुंचती है तो फ्लू का वायरस कोरोना की नकल करता है और इम्यून रेस्पॉन्स को बढ़ाता है ताकि शरीर कोविड-19 से लड़ सके।
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